गया के इस कुंड में बालू से किया जाता है पिंडदान
श्रद्धालु गया के इस कुंड में बालू से पिंडदान करते हैं,
गया के इस प्राचीन कुंड में बालू से होता है पिंडदान, यह एक सदियों पुरानी परंपरा है जो भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण है। यह कुंड गया के विश्व प्रसिद्ध विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के प्रांगण में स्थित है, जो शिव भगवान के समर्पित है।
इस कुंड में बालू से पिंडदान करने का मान्यता से विश्वास है कि पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। यह प्रथा संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और लोग इसे बहुत श्रद्धा भाव से पालन करते हैं।
इसलिए किया जाता है गया में रेत का पिंडदान
वाल्मीकि रामायण के अनुसार पितृपक्ष के दौरान भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने पिता दशरथ की आत्मा के शांति के लिए गया में पिंडदान करने पहुंचे थे. कहा जाता है कि भगवान राम माता सीता के साथ नगर में जाकर श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित कर रहे थे तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है. इस दौरान राजा दशरथ ने माता सीता को दर्शन दे कर पिंडदान करने के लिए कहा.
मान्यता है कि माता सीता ने यहां पर फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मान कर बालू का पिंड बना कर पिंडदान किया जिससे राजा दशरथ की आत्मा को शांति मिली. तब से मान्यता है कि गया में फल्गु नदी के तट पर बालू का पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनका आशीर्वाद मिलता है.
गया के इस पवित्र स्थल पर हर साल आगामी पितृपक्ष में अनगिनत श्रद्धालु आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में माना जाता है और इसका आयोजन विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा किया जाता है।"