तुलसी विवाह 2023
23 नवंबर 2023 की शाम 5 बजकर 9 मिनट से प्रारंभ होगी और 24 नवंबर, शुक्रवार की शाम 7 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी।एक समय की बात है, कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि, कार्तिक मास की शुक्लपक्ष। भूमि पर भगवान विष्णु का आवतार, श्रीकृष्ण, और स्वर्ग में एक श्रीमती तुलसी के रूप में एक सुंदरी देवी ने अपनी प्राकृत स्वरूप से उत्तम तपस्या की थी। उनकी विशेष पूजा और दीननाथ के प्रति उनकी प्रेम भावना ने उन्हें भगवान की कृपा को प्राप्त करने का सौभाग्य दिलाया।
तुलसी, जो अपनी पूर्व जन्म की कठिनाईयों के कारण श्रीकृष्ण के प्रेमी बनी थी, ने भगवान की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा जी के पास गई थीं। उन्होंने भगवान विष्णु से वर मांगा कि वह सदैव उनके साथ रहें और उनकी सेवा करें। भगवान ने तुलसी की इच्छा को सुना और उन्होंने कहा, "तुलसी, मैं तुम्हारे प्रेम में पूर्ण रूप से रहूँगा, लेकिन मेरा एक वचन है कि मैं केवल तुम्हारे मनोरथ के लिए नहीं रह सकता। मैंने वाराणसी के महादेव, भगवान शिव से मेरी शक्ति को सीमित करने का आदेश दिया है।"
तुलसी ने भगवान के वचन को स्वीकार किया, और वे भगवान की सेवा में लीन हो गईं। समय बीतता गया और वह श्रीकृष्ण की भक्ति में रत रहीं। एक दिन, गोपियाँ अपने प्रेमी कान्हा के साथ खेतों में खेल रही थीं और तुलसी भी उनके साथ थी। तभी एक गोप लड़की ने एक सुंदर माला बनाई और उसमें तुलसी के लिए सुन्दर फूलों को सजाकर पहना दिया।
कृष्ण ने वह माला देखी और उन्हें बहुत अच्छी लगी। वे तुलसी से उस माला को पहनने का अनुरोध करने लगे। तुलसी ने शर्माते हुए उस माला को कृष्ण को पहना दिया, जिससे कृष्ण का प्रेम उसे और बढ़ गया।
तुलसी ने भगवान के प्रति अपना प्रेम और भक्ति में इतनी मेहनत की कि उनकी तपस्या ने शिवजी को प्रसन्न कर लिया। शिवजी ने उनकी तपस्या को देखकर आकाश से गिरी हुई ज्यों की एक अद्भुत सुन्दर देवी को भूमि पर प्रकट कर दिया। इस रूप में, तुलसी ने भगवान विष्णु के साथ विवाह के लिए अपनी अनुमति मांगी
तुलसी और विष्णु के विवाह का अद्वितीय उत्सव मनाया गया। इस दिन को 'तुलसी विवाह' कहा जाने लगा और इसे शुक्लपक्ष की कार्तिक मास की एकादशी को मनाने का आदान-प्रदान हो गया। लोग इसे भगवान विष्णु की श्रीमती तुलसी के भक्तिपूर्ण विवाह की यात्रा में शामिल होते हैं और इसे भगवान की कृपा की रूप में मानते हैं।
इस पवित्र विवाह की कहानी ने हमें यह सिखाता है कि भक्ति, आस्था और समर्पण से ही दिव्य प्रेम की प्राप्ति हो सकती है, और इससे हम आत्मा को परमात्मा के संग मिलते हैं।इस विवाह की कहानी ने दिखाया कि तुलसी की अद्वितीय प्रेम और भक्ति ने उसे दिव्य स्तर पर उठा दिया। उसकी अनबाकी भक्ति ने उसे भगवान के साथ एक सुखद और सीमित संबंध बनाने का अद्वितीय अवसर प्रदान किया।
तुलसी विवाह का उत्सव हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल द्वादशी को मनाया जाता है, और इस दिन लोग श्रीकृष्ण और तुलसी के विवाह की रात की कथा को सुनकर पूजा-अर्चना करते हैं। इस अवसर पर शादी के रितुअल्स को पुनः नौका के साथ आयोजित किया जाता है, जिसमें तुलसी के पति के रूप में शालिग्राम शिला को सजाकर बारात निकाली जाती है।
तुलसी विवाह के पर्व के दौरान, लोग तुलसी के प्रेम और विष्णु के साथ उसके विवाह का उत्सव मनाकर उनकी शक्ति और प्रेम की शक्ति का महत्वपूर्ण संदेश साझा करते हैं। इस दिन विशेष रूप से तुलसी पूजा की जाती है और लोग तुलसी के पति के रूप में तुलसी पौध की पूजा करते हैं।
तुलसी विवाह की कहानी ने धार्मिक दृष्टिकोण से इसे एक महत्वपूर्ण पर्व बना दिया है, जो भक्ति और समर्पण की महत्वपूर्णता को हार-जीत के रूप में प्रस्तुत करता है। इसके माध्यम से, लोग भगवान के साथ अपना आत्मनिर्भरता और समर्पण बढ़ाते हैं, जिससे उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।