बिहार के काश्मीर ककोलत जलप्रपात में चौथी बार बाढ़: पर्यटन पर असर, सुरक्षा बढ़ाई गई।
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ककोलत में बाढ |
**डीएफओ का बयान:**
ककोलत जलप्रपात में बाढ़ का यह चौथा मौका है, जो मई से अब तक दर्ज किया गया है। वन विभाग के डीएफओ संजीव रंजन ने बताया कि ककोलत जलप्रपात में बाढ़ आने पर इसका रूप अत्यंत विकराल हो जाता है। उन्होंने कहा, "बाढ़ का पानी इस बार पार्किंग एरिया तक आ गया था, जिससे सैलानियों की सुरक्षा के लिए हमने रविवार को इंट्री पर रोक लगा दी थी। हालांकि, अब स्थिति सामान्य हो गई है और सैलानियों के लिए चिंता की कोई बात नहीं है। सोमवार को रक्षाबंधन के मौके पर सैलानी जलप्रपात का आनंद ले सकेंगे।"
**सर्प रेस्क्यू ऑपरेशन:**
बाढ़ के दौरान जलप्रपात में बहकर दो सांप आ गए थे, जिन्हें वन विभाग की टीम ने सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ दिया। इस घटना ने वन विभाग की तत्परता और जिम्मेदारी का एक और उदाहरण प्रस्तुत किया है।
**बाढ़ का प्रभाव:**
पिछले रविवार को ककोलत जलप्रपात पर 5500 से अधिक सैलानियों ने इसका आनंद उठाया था। इस बार की बाढ़ ने पर्यटकों की संख्या पर असर डाला है, जिससे पर्यटन व्यवसाय को नुकसान हुआ। बाढ़ के कारण जलप्रपात का सौंदर्य कुछ समय के लिए ढक गया, लेकिन जैसे ही पानी का स्तर कम हुआ, सैलानी वापस लौट आए।
**सुरक्षा और व्यवस्था:**
वन विभाग ने ककोलत जलप्रपात के आसपास की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। जलप्रपात के आस-पास के क्षेत्रों में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की गई है, और चेतावनी संकेत लगाए गए हैं ताकि सैलानी सुरक्षित रह सकें। बाढ़ के दौरान पानी का स्तर अचानक बढ़ जाने के कारण पार्किंग एरिया तक पानी पहुँच गया था, लेकिन वन विभाग की तत्परता से किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं घटी।
**सौंदर्याकरण ने बढ़ाई खूबसूरती:**
ककोलत जलप्रपात अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहाँ का सौंदर्यीकरण भी सैलानियों को आकर्षित कर रहा है। पत्थर की आकर्षक आकृतियाँ, चिड़िया और पशु-पक्षियों की कलाकृतियाँ यहाँ के प्राकृतिक वातावरण का अद्भुत अनुभव कराती हैं। इसके अलावा, यूरोपियन मॉडल में बने गेस्ट हाउस भी सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं।
पहले शीतल जलप्रपात तक जाने के रास्ते में पत्थरों के गिरने का डर बना रहता था, लेकिन अब इसे दूर कर लिया गया है। रास्ते में पत्थर की स्टेबलाइजेशन की गई है, जिससे सैलानियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इस प्रक्रिया में जालीनुमा लोहे की तारों से पत्थरों को बांधा गया है, जिससे पत्थर गिरने का खतरा कम हो गया है। यह तकनीक वैष्णो देवी जैसे तीर्थ स्थलों के मार्ग में भी अपनाई जाती है।
**पर्यटन पर असर:**
ककोलत जलप्रपात में बार-बार आने वाली बाढ़ ने इस क्षेत्र के पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। बाढ़ के कारण सैलानियों की संख्या में गिरावट आई है, जिससे स्थानीय व्यवसाय प्रभावित हुए हैं। हालांकि, वन विभाग और प्रशासन की तत्परता से स्थिति जल्द ही सामान्य हो जाती है, जिससे सैलानी दोबारा यहाँ का आनंद लेने आते हैं।
**आगे की योजना:**
वन विभाग ने भविष्य में ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए कुछ योजनाएँ बनाई हैं। इनमें जलप्रपात के आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा उपायों को और अधिक मजबूत करना शामिल है। साथ ही, बाढ़ के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ तकनीकी उपाय भी किए जाएंगे, ताकि सैलानियों को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े। ककोलत जलप्रपात, जिसे बिहार का कश्मीर कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन हाल के महीनों में बार-बार आने वाली बाढ़ ने इस सुंदरता पर प्रभाव डाला है। वन विभाग की सतर्कता और सुरक्षा उपायों के बावजूद, बाढ़ के कारण पर्यटन पर असर पड़ा है। हालांकि, स्थिति जल्दी सामान्य हो जाती है और सैलानी फिर से यहाँ आकर इस अद्भुत स्थल का आनंद ले सकते हैं। ककोलत जलप्रपात का सौंदर्य और यहाँ का सौंदर्यीकरण इसे एक सुरक्षित और आकर्षक पर्यटन स्थल बनाए रखते हैं। वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के प्रयासों से यह स्थल सैलानियों के लिए एक सुरक्षित और सुखद अनुभव प्रदान कर रहा है।