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**मसौढ़ी के द्वारिका नाथ महाविद्यालय में तालाबंदी और हड़ताल: लंबित अनुदान की मांग को लेकर शिक्षकों का आंदोलन**

 **मसौढ़ी के द्वारिका नाथ महाविद्यालय में तालाबंदी और हड़ताल: लंबित अनुदान की मांग को लेकर शिक्षकों का आंदोलन**

**पटना:** राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी स्थित द्वारिका नाथ महाविद्यालय (डीएन कॉलेज) में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया, जब कॉलेज के सभी शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों ने मिलकर महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर तालाबंदी कर दी और अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर दिया। उनकी मुख्य मांग पिछले पांच वर्षों से लंबित अनुदान की है, जिसके बिना वे आगे काम करने को तैयार नहीं हैं। 

**हड़ताल की पृष्ठभूमि**

डीएन कॉलेज में वर्तमान में लगभग 85 शिक्षक और 60 शिक्षकेतर कर्मचारी कार्यरत हैं। यह महाविद्यालय क्षेत्र का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है, जहाँ सैकड़ों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। शिक्षकों और कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने वर्ष 2012 से 2016 तक के अनुदान की राशि कॉलेज के खाते में जमा करा दी थी। यह राशि लगभग 7.50 करोड़ रुपये है। इसके बावजूद, प्रबंधन की लापरवाही के कारण यह राशि अब तक शिक्षकों और कर्मचारियों तक नहीं पहुंच सकी है। 

**आंदोलन की शुरुआत और मुख्य मांगे**

इस अनिश्चितकालीन हड़ताल की अगुवाई कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षकों और कर्मचारियों ने की। प्रोफेसर बिजेंदर पासवान, डॉ मदन प्रसाद, प्रोफेसर श्याम किशोर सिंह, डॉ महेंद्र कुमार सिंह, और डॉ मुंद्रिका मिस्त्री जैसे वरिष्ठ शिक्षकों ने महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया और इस बात की घोषणा की कि जब तक उन्हें लंबित अनुदान की राशि नहीं मिलेगी, वे अपने आंदोलन को समाप्त नहीं करेंगे।

 **प्रबंधन की लापरवाही का आरोप**

शिक्षकों का आरोप है कि कॉलेज के प्राचार्य और सचिव के बीच की आपसी रंजिश के कारण अनुदान की राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे शिक्षक डॉक्टर अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने बताया कि यह समस्या केवल प्रबंधन की लापरवाही की वजह से उत्पन्न हुई है। "कई शिक्षक और कर्मचारी इस स्थिति से बेहद परेशान हैं," उन्होंने कहा। "कुछ लोगों के परिवार में शादी-विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य रुके हुए हैं, जबकि अन्य अपनी बीमारी का इलाज कराने में असमर्थ हैं।"

 **हड़ताल का असर**

डीएन कॉलेज के शिक्षक और कर्मचारी इस अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं की जाएंगी, तब तक कॉलेज में किसी भी प्रकार की शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक गतिविधियाँ नहीं हो सकेंगी। सभी कर्मियों ने स्पष्ट रूप से यह चेतावनी दी है कि जब तक उनकी लंबित राशि का भुगतान नहीं किया जाएगा, कॉलेज के सभी कार्य बाधित रहेंगे। 

**छात्रों पर प्रभाव**

इस हड़ताल का सबसे बड़ा प्रभाव कॉलेज के छात्रों पर पड़ा है। महाविद्यालय में तालाबंदी और सभी गतिविधियों के ठप होने से छात्रों की पढ़ाई पूरी तरह से प्रभावित हो गई है। कई छात्रों ने इस स्थिति पर चिंता जताई है और कहा है कि अगर जल्दी ही कोई समाधान नहीं निकाला गया, तो उनकी पढ़ाई और भविष्य पर इसका बुरा असर पड़ सकता है।

**प्राचार्य और सचिव की भूमिका**

शिक्षकों और कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि कॉलेज के प्राचार्य और सचिव के बीच लंबे समय से चल रही आपसी रंजिश के कारण इस स्थिति ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। उनका कहना है कि इन दोनों अधिकारियों के बीच के विवाद का खामियाजा पूरे महाविद्यालय को भुगतना पड़ रहा है। शिक्षकों ने यह भी दावा किया कि अगर प्रबंधन सही समय पर कार्रवाई करता और आपसी मतभेदों को हल करता, तो यह संकट उत्पन्न ही नहीं होता।

**सरकारी उदासीनता**

हड़ताली कर्मियों ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। सरकार ने अनुदान की राशि तो महाविद्यालय के खाते में जमा करा दी, लेकिन इसके वितरण और सही समय पर भुगतान की निगरानी नहीं की गई। 

 **आंदोलन का भविष्य और प्रशासन की प्रतिक्रिया**

डीएन कॉलेज के शिक्षक और कर्मचारी इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे इसे अपनी आखिरी लड़ाई मानते हैं और तब तक संघर्ष करने का निर्णय लिया है जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता। हालांकि, कॉलेज प्रशासन की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई है। 

**छात्र संगठनों की प्रतिक्रिया

इस आंदोलन के प्रति छात्रों की भी मिलीजुली प्रतिक्रिया है। कुछ छात्र संगठनों ने हड़ताली शिक्षकों के प्रति समर्थन व्यक्त किया है, जबकि अन्य ने इस आंदोलन के कारण हो रही पढ़ाई की हानि पर चिंता जताई है। 

डीएन कॉलेज, मसौढ़ी में चल रही इस हड़ताल और तालाबंदी से यह स्पष्ट है कि शिक्षा प्रणाली में निहित प्रबंधन और प्रशासनिक खामियों का कितना गहरा प्रभाव हो सकता है। शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों की मांगें पूरी तरह से वैध हैं, लेकिन इस संघर्ष का समाधान निकालना महाविद्यालय और सरकार दोनों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस संकट के शीघ्र समाधान के लिए सभी पक्षों को मिलकर एक सार्थक समाधान निकालने की आवश्यकता है, ताकि छात्रों की पढ़ाई और महाविद्यालय की साख पर कोई और आंच न आए। 

इस आंदोलन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि शिक्षा प्रणाली में समय पर और सही तरीके से निर्णय लेने की कितनी अहमियत होती है। अगर समय रहते प्रशासनिक स्तर पर उचित कदम उठाए गए होते, तो आज डीएन कॉलेज इस गंभीर संकट का सामना नहीं कर रहा होता। अब देखना यह है कि सरकार और कॉलेज प्रशासन इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं और कितनी जल्दी इस समस्या का समाधान निकालते हैं।

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