पटना हाईकोर्ट ने राजधानी के निजी स्कूलों के डीजल चालित बसों पर लगाए गए प्रतिबंध पर लगाई रोक।
पटना हाईकोर्ट ने राजधानी पटना के निजी स्कूलों के डीजल चालित बसों के संचालन पर लगी रोक को फिलहाल 7 अक्टूबर 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया है।- एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस ए अभिषेक रेड्डी ने यह आदेश दिया।
- राज्य सरकार द्वारा 23 फरवरी 2024 को जारी आदेश के तहत सभी निजी स्कूलों की डीजल बसों को सीएनजी में परिवर्तित करने के लिए सितम्बर 2024 तक का समय दिया गया था।
पटना हाईकोर्ट का यह फैसला राज्य सरकार के उस आदेश पर आधारित है, जिसमें राजधानी पटना के सभी निजी स्कूलों में डीजल चालित बसों के संचालन पर रोक लगा दी गई थी। इस आदेश के पीछे सरकार का तर्क था कि डीजल बसों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यह कदम उठाया गया। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों को भी ध्यान में रखा गया। लेकिन इस आदेश के जारी होने के बाद निजी स्कूल संचालकों के सामने कई कठिनाइयां उत्पन्न हो गईं, जिसके चलते एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल ने इस आदेश के खिलाफ पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सरकारी आदेश और उसकी चुनौतियाँ
23 फरवरी 2024 को राज्य सरकार द्वारा जारी इस आदेश के तहत सभी निजी स्कूलों की डीजल बसों को सीएनजी में परिवर्तित करने का निर्देश दिया गया था। इसके लिए स्कूल संचालकों को सितम्बर 2024 तक का समय दिया गया। लेकिन इस आदेश के बाद निजी स्कूल संचालकों ने इसकी व्यवहार्यता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बिना किसी ठोस योजना के इस आदेश को लागू करना असंभव है।
याचिकाकर्ता का पक्ष
एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल की ओर से कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि सरकार के इस आदेश के चलते निजी स्कूलों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि डीजल चालित बसों को सीएनजी में परिवर्तित करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है। साथ ही, यदि इन बसों को स्थानीय स्तर पर सीएनजी में बदला भी जाता है, तो यह तकनीकी रूप से कितना सुरक्षित होगा, इस पर भी सवाल खड़े किए गए। याचिकाकर्ता ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसी बसों में दुर्घटनाएं होने का खतरा बना रहेगा, जिससे छात्रों के जीवन पर खतरा मंडरा सकता है।
सीएनजी स्टेशनों की कमी
याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि यदि किसी प्रकार इन डीजल बसों को सीएनजी में बदल भी दिया जाता है, तो राजधानी पटना में सीएनजी भरने के लिए पर्याप्त स्टेशनों की कमी है। इससे स्कूल संचालकों के लिए और भी समस्याएं पैदा होंगी। उन्होंने कहा कि सीएनजी स्टेशनों की कमी के कारण बसों के संचालन में बाधाएं आएंगी, जिससे छात्रों की सुरक्षा पर भी सवाल उठेंगे।
सरकार के आदेश की विसंगतियाँ
कोर्ट को यह भी बताया गया कि एक ओर तो राज्य सरकार ने डीजल चालित बसों के संचालन पर रोक लगा दी है, वहीं दूसरी ओर इन बसों का निबंधन भी जारी रखा गया है। यह स्थिति विरोधाभासी है और इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने इस आदेश को जारी करते समय सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि बिना पर्याप्त तैयारी के इस आदेश को लागू करने से निजी स्कूलों के संचालन में गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
कोर्ट का फैसला
इन सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद पटना हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को इस आदेश को लागू करने से पहले सभी संबंधित पक्षों से परामर्श करना चाहिए था और एक ठोस योजना बनानी चाहिए थी। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सरकार को सीएनजी में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि निजी स्कूल संचालकों को अनावश्यक कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।
अगली सुनवाई
मामले की अगली सुनवाई की तिथि 7 अक्टूबर 2024 निर्धारित की गई है। इस दौरान राज्य सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सरकार को इस मुद्दे पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी होगी, जिसमें सीएनजी में परिवर्तित करने की योजना, आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा उपायों का ब्यौरा शामिल हो।
निजी स्कूल संचालकों की प्रतिक्रिया
कोर्ट के इस फैसले के बाद निजी स्कूल संचालकों ने राहत की सांस ली है। उन्होंने कहा कि सरकार के इस आदेश के चलते उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन कोर्ट के इस फैसले से उन्हें कुछ समय के लिए राहत मिली है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही इस मुद्दे का समाधान निकालेगी और उनकी समस्याओं का समाधान करेगी।
पर्यावरणविदों का दृष्टिकोण
हालांकि, पर्यावरणविदों ने सरकार के इस आदेश का समर्थन किया है। उनका कहना है कि डीजल चालित बसों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए यह कदम आवश्यक था। उन्होंने कहा कि बच्चों के स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार को इस आदेश को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
सरकार का यह आदेश, हालांकि, पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई गंभीर चुनौतियां सामने आई हैं। डीजल चालित बसों को सीएनजी में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक तकनीकी और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण निजी स्कूल संचालकों के सामने गंभीर समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। इसके अलावा, सीएनजी स्टेशनों की कमी भी एक बड़ी चुनौती है, जो इस आदेश के क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
इसके साथ ही, इस आदेश के क्रियान्वयन में सरकार की तैयारी की कमी भी सामने आई है। सरकार ने इस आदेश को जारी करते समय निजी स्कूल संचालकों से परामर्श नहीं किया, जिससे उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया गया। इसके परिणामस्वरूप, यह मामला अब अदालत तक पहुंच गया है और सरकार को अब इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए ठोस योजना बनानी होगी।
पटना हाईकोर्ट का यह आदेश राज्य सरकार के परिवहन विभाग के उस फैसले पर एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया है, जिसमें बिना किसी ठोस योजना के डीजल चालित बसों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया था। यह मामला यह दिखाता है कि किसी भी नीति को लागू करने से पहले उससे जुड़े सभी पहलुओं का गहन अध्ययन और समीक्षा आवश्यक होती है। अब देखना यह होगा कि 7 अक्टूबर 2024 को होने वाली अगली सुनवाई में राज्य सरकार किस प्रकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करती है और इस मुद्दे का समाधान कैसे होता है।
इस बीच, निजी स्कूल संचालकों को राहत मिली है, लेकिन बच्चों की सुरक्षा और पर्यावरण के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए सरकार को ठोस और दीर्घकालिक समाधान की दिशा में कदम उठाने होंगे। यह आवश्यक है कि सरकार अपने आदेशों को लागू करने से पहले सभी संबंधित पक्षों से परामर्श करे और उन्हें आवश्यक सहयोग और संसाधन प्रदान करे।
सरकार और निजी स्कूल संचालकोंयह आवश्यक है कि सरकार अपने आदेशों को लागू करने से पहले सभी संबंधित पक्षों से परामर्श करे और उन्हें आवश्यक सहयोग और संसाधन प्रदान करे।
सरकार और निजी स्कूल संचालकों के बीच सहयोग और संवाद की आवश्यकता है ताकि इस मुद्दे का समाधान निकाला जा सके और बच्चों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों को सुनिश्चित किया जा सके। पटना हाईकोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सरकार को अपने आदेशों पर पुनर्विचार करने और उन्हें और अधिक व्यवहारिक और के बीच सहयोग और संवाद की आवश्यकता है ताकि इस मुद्दे का समाधान निकाला जा सके और बच्चों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों को सुनिश्चित किया जा सके। पटना हाईकोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सरकार को अपने आदेशों पर पुनर्विचार करने और उन्हें और अधिक व्यवहारिक और क्रियान्वयन योग्य बनाने की दिशा में प्रेरित करेगा।