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भगवान चित्रगुप्त की कथा। चित्रगुप्त भगवान की कथा हिंदू धर्म और विशेषकर कायस्थ समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

 भगवान चित्रगुप्त की कथा।

श्री चित्रगुप्त महाराज
चित्रगुप्त भगवान की कथा हिंदू धर्म और विशेषकर कायस्थ समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। चित्रगुप्त को न्याय के देवता और कर्मों के लेखा-जोखा रखने वाले भगवान के रूप में जाना जाता है। इन्हें मुख्य रूप से यमराज के सहायक के रूप में देखा जाता है, जो मृत्यु के बाद प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का हिसाब रखते हैं और उसी के अनुसार न्याय करते हैं। चित्रगुप्त भगवान की पूजा विशेषकर कायस्थ समाज में की जाती है, लेकिन सभी जातियों में भी उनका सम्मान और पूजा होती है।


चित्रगुप्त भगवान की उत्पत्ति

पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना के बाद जब भगवान ब्रह्मा ने मानव जाति को जन्म दिया, तो उन्हें यह चिंता हुई कि संसार में किए गए पाप और पुण्य का हिसाब कौन रखेगा। ब्रह्मा ने सभी देवी-देवताओं से परामर्श लिया और अंततः उन्होंने एक विशेष शक्ति का सृजन करने का निर्णय लिया जो मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा रख सके। 


ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया और कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। इसके बाद उनकी नाभि से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए, जिनके हाथ में कलम और दवात थी। यह व्यक्ति विशेष रूप से कर्मों का लेखा रखने के लिए उत्पन्न हुआ था और इन्हीं को "चित्रगुप्त" कहा गया। "चित्र" का अर्थ है "गुप्त" (अदृश्य) और "गुप्त" का अर्थ है "गोपन करना"। इस प्रकार, उनका नाम चित्रगुप्त रखा गया, जिसका अर्थ हुआ "अदृश्य रूप में सभी कर्मों का लेखा रखने वाला"।


 चित्रगुप्त भगवान और न्याय का कार्य

चित्रगुप्त भगवान को यमराज का मुख्य सहायक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा को यमराज के दरबार में लाया जाता है। वहाँ चित्रगुप्त व्यक्ति के समस्त जीवन के कर्मों का लेखा प्रस्तुत करते हैं। उनके आधार पर यमराज निर्णय लेते हैं कि आत्मा को स्वर्ग, नरक, या पुनर्जन्म में किस स्थान पर भेजा जाए। 


चित्रगुप्त जी का यह कार्य इतना महत्वपूर्ण है कि इसे अन्य किसी देवता को नहीं सौंपा गया। चित्रगुप्त भगवान के पास कलम और दवात है, जो इस बात का प्रतीक है कि कर्मों का लेखा-जोखा रखना एक दिव्य कार्य है और इसे किसी अन्य साधारण व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता।


 चित्रगुप्त पूजा का महत्व

कायस्थ समाज में चित्रगुप्त पूजा का विशेष महत्व है। दीपावली के अगले दिन "चित्रगुप्त पूजा" का आयोजन होता है। इस दिन कायस्थ समाज के लोग कलम, दवात और पुस्तकों का पूजन करते हैं और भगवान चित्रगुप्त से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का क्षय होता है और उसे अपने कर्मों का सही फल मिलता है।


चित्रगुप्त पूजा में लेखन सामग्री का पूजन किया जाता है, और इसे कायस्थ समाज में "कलम-दवात पूजा" भी कहा जाता है। इस दिन लोग अपने पुराने हिसाब-किताब को बंद करके नए सिरे से कार्य का आरंभ करते हैं। 


 चित्रगुप्त जी के 12 पुत्रों की कथा

चित्रगुप्त भगवान के 12 पुत्र थे, जिन्हें कायस्थों के 12 अलग-अलग वंशों का जनक माना जाता है। उनके पुत्रों के नाम से ही कायस्थों के अलग-अलग उपनाम बनाए गए, जैसे श्रीवास्तव, सक्सेना, निगम, माथुर, अम्बष्ट, कुलश्रेष्ठ, गौड़, भटनागर, खरे, अस्थाना, कर्ण और वाल्मीकि। प्रत्येक वंश में अलग-अलग विशेषताएं और पारंपरिक कर्तव्य माने जाते हैं, जो चित्रगुप्त भगवान के पुत्रों से प्रेरित हैं।


 चित्रगुप्त जी का संदेश

चित्रगुप्त भगवान का संदेश है कि जीवन में हर व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति सचेत रहना चाहिए, क्योंकि हर कार्य का परिणाम होता है और यह परिणाम मृत्यु के बाद सामने आता है। उनके द्वारा दिए गए न्याय में निष्पक्षता होती है, जो हर व्यक्ति को उसके कर्मों का उचित फल प्रदान करता है। 

इस प्रकार, चित्रगुप्त भगवान को न केवल न्याय के देवता बल्कि हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले मार्ग

दर्शक भी माना जाता है।


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