Type Here to Get Search Results !

Comments

Comments

लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन: पटना में होगा अंतिम संस्कार, बेटे अंशुमान ने कहा ।

 लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन: पटना में होगा अंतिम संस्कार, बेटे अंशुमान ने कहा – "मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया।

अब नहीं रही शारदा सिन्हा
पटना: छठ महापर्व की शुरुआत के पहले ही बिहार की मशहूर लोक गायिका, पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा का मंगलवार रात निधन हो गया। दिल्ली के एम्स में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। रात 9:20 बजे उनके निधन की खबर ने बिहार और पूरे संगीत जगत को शोक में डुबो दिया। शारदा सिन्हा पिछले 7 सालों से कैंसर से पीड़ित थीं और 26 अक्टूबर को अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें एम्स के कैंसर सेंटर में भर्ती कराया गया था। शुरू में उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया, लेकिन 4 नवंबर को उनकी हालत अधिक बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। हालांकि, डॉक्टर्स की कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।

सभी को छोड़ा भावुक।

बेटे अंशुमान ने बताया कि उनके निधन से परिवार और चाहने वालों को गहरा सदमा लगा है। अंशुमान ने कहा, "मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया।" शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार आज पटना में किया जाएगा, जहां बिहार की जनता उन्हें अंतिम विदाई देगी। बुधवार सुबह उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली एयरपोर्ट लाया गया और वहां से बिहार ले जाने की तैयारी की गई। शारदा सिन्हा के निधन के बाद बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने लिया हालचाल।

बेटे अंशुमान ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके हालचाल जानने के लिए फोन किया था और शारदा सिन्हा की तबीयत के बारे में जानकारी ली थी। उन्होंने अपनी मां को भी यह जानकारी दी, जिसके बाद वेंटिलेटर पर होने के बावजूद, शारदा सिन्हा ने अपनी आंखों को हल्का सा हिलाकर खुशी जताई। प्रधानमंत्री मोदी ने एम्स के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास को निर्देश दिए कि वे शारदा सिन्हा की देखभाल में कोई कमी न होने दें। इस दुखद खबर के बाद प्रधानमंत्री ने शारदा सिन्हा के परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त कीं।

बिहार की सांस्कृतिक राजदूत थीं शारदा सिन्हा।

शारदा सिन्हा ने मैथिली और भोजपुरी लोकगीतों को एक नई पहचान दिलाई थी। उनकी मधुर आवाज और पारंपरिक गीतों के कारण वे ‘बिहार की सांस्कृतिक राजदूत’ कही जाती थीं। खासकर छठ महापर्व के अवसर पर उनके गीतों को सुनने के लिए बिहार समेत देशभर में लोग इंतजार करते थे। उनके गाए छठ गीत ‘कांच ही बांस के बहंगिया’ और ‘पार होईहे दिनानाथ’ न केवल बिहार बल्कि विदेशों में बसे बिहारियों के लिए भी छठ का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। 

विदेशों में भी गूंजी थी आवाज।

शारदा सिन्हा ने देश-विदेश में कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी थी। जब मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन राम गुलाम बिहार आए थे, तब शारदा सिन्हा ने उनके स्वागत में विशेष प्रस्तुति दी थी। उनकी आवाज में एक ऐसा आकर्षण था, जो हर आयु वर्ग के लोगों को अपनी ओर खींच लेता था। उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1991 में पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण से नवाजा गया था।

हाल ही में पति का भी हुआ था निधन।

शारदा सिन्हा के परिवार पर पिछले कुछ दिनों में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। कुछ समय पहले ही उनके पति बृज किशोर सिन्हा का भी निधन हुआ था। उनके जाने के बाद से शारदा सिन्हा काफी टूट गई थीं और इस सदमे से उबर नहीं पा रही थीं। पति के निधन के बाद भी वे काफी भावुक हो गई थीं और अपने करीबी लोगों से केवल अपने गीतों और छठी मईया की बातें किया करती थीं।

भोजपुरी और मैथिली संगीत का अनमोल योगदान।

शारदा सिन्हा ने न केवल छठ महापर्व के गीतों को लोकप्रियता दिलाई, बल्कि मैथिली और भोजपुरी संगीत को भी वैश्विक पहचान दिलाई। उनके लोकगीतों में बिहार की माटी की महक थी और उनके गाए गीतों में आम जनता के जीवन, संघर्ष, प्रेम, और उत्सव का भावपूर्ण चित्रण होता था। उनके गीतों के माध्यम से उन्होंने बिहार की परंपरा और संस्कृति को सहेजने का काम किया। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। 

आखिरी विदाई की तैयारी।

बिहार की बेटी और लोक संगीत की मसीहा शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर आज पटना पहुंचेगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके चाहने वाले उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए बड़ी संख्या में जुटेंगे। उनके बेटे ने बिहारवासियों से अपील की है कि वे अपनी दुआओं में मां को याद रखें। शारदा सिन्हा के निधन से एक युग का अंत हो गया है, लेकिन उनकी आवाज हमेशा लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.