डॉ. मनमोहन सिंह: भारतीय अर्थव्यवस्था के 'भीष्म पितामह' का निधन, पूरा देश शोक में डूबा
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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन |
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
26 सितंबर 1932 को डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) में हुआ। 1947 में भारत के विभाजन के दौरान उनका परिवार भारत आ गया। बचपन से ही शिक्षा के प्रति उनकी रुचि स्पष्ट थी। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
शिक्षण और प्रशासनिक सेवाओं का सफर:
डॉ. सिंह ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के रूप में की। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया। इसके बाद उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं में कदम रखा और 1972 से 1976 तक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे।
1982 से 1985 तक वे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और 1985 से 1987 तक योजना आयोग के अध्यक्ष रहे। इन भूमिकाओं में उन्होंने अपनी नीतियों और सुझावों से देश को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया।
1991: भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्किटेक्ट के रूप में पहचान:
1991 में भारत आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था। उस समय डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री का पद संभाला। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की राह पर डाला। इन सुधारों ने न केवल भारत को संकट से उबारा बल्कि वैश्विक मंच पर एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया। उनकी नीतियों के कारण उन्हें 1993 और 1994 में 'फाइनेंस मिनिस्टर ऑफ द ईयर' का खिताब दिया गया।
प्रधानमंत्री के रूप में उपलब्धियां:
2004 में डॉ. मनमोहन सिंह देश के 13वें प्रधानमंत्री बने और 2014 तक इस पद पर बने रहे। वे भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल कीं।
उनके कार्यकाल में सूचना प्रौद्योगिकी और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए। उन्होंने ग्रामीण विकास, कृषि और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को मजबूत करने में उनके प्रयासों को हमेशा याद किया जाएगा।
सम्मान और पुरस्कार:
डॉ. मनमोहन सिंह को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
1987 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया।
2010 में उन्हें सऊदी अरब के 'ऑर्डर ऑफ किंग अब्दुलअजीज' से सम्मानित किया गया।
2014 में जापान ने उन्हें 'ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द पॉलोनिया फ्लावर्स' प्रदान किया।
एक सादगीपूर्ण जीवन:
डॉ. मनमोहन सिंह अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने हमेशा देशहित और आम जनता के कल्याण को प्राथमिकता दी। उनके नेतृत्व में देश ने न केवल आर्थिक संकट से उबरने की राह देखी, बल्कि एक स्थिर और समृद्ध राष्ट्र के रूप में उभरने की नींव भी रखी।
डॉ. सिंह का निधन: एक युग का अंत:
डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारत के लिए एक बड़ी क्षति है। उनकी विदाई के साथ भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के एक स्वर्णिम अध्याय का अंत हो गया। उनके योगदान और उनके विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे।
"डॉ. मनमोहन सिंह की कहानी हमें बताती है कि सादगी, ज्ञान और कड़ी मेहनत से किस तरह असंभव को संभव बनाया जा सकता है।"
डॉ. मनमोहन सिंह: एक प्रेरणादायक जीवन की कहानी:
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन उन चुनिंदा व्यक्तित्वों में से एक है, जिन्होंने भारत को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। विभाजन की त्रासदी झेलने के बावजूद उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय और शिक्षा के प्रति समर्पण से इतिहास रच दिया।
शिक्षा: सफलता की नींव:
उनका मानना था कि शिक्षा ही किसी भी व्यक्ति और समाज की प्रगति की कुंजी है। उनकी उच्च शिक्षा के दौरान कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में वे सबसे मेधावी छात्रों में से एक थे। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अपनी डॉक्टरेट पूरी करने के बाद वे अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ बन गए।
आर्थिक सुधारों का दौर:
1991 का वर्ष भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। देश गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था—विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा था और देश दिवालिया होने के कगार पर था। ऐसे समय में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में अपने साहसिक निर्णयों से देश को संकट से बाहर निकाला।
उन्होंने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) के तहत कई सुधार लागू किए, जिनसे न केवल देश में व्यापार और उद्योग को बढ़ावा मिला, बल्कि भारत वैश्विक आर्थिक मंच पर मजबूती से उभर सका।
प्रधानमंत्री के रूप में स्थायित्व और विकास:
डॉ. सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में दो कार्यकाल (2004-2014) राजनीतिक स्थिरता और विकास का प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सुधार किए।
उनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:
1. मनरेगा योजना - ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने के लिए ऐतिहासिक कदम।
2. सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) का विकास - भारत को आईटी क्षेत्र में वैश्विक पहचान दिलाई।
3. न्यूक्लियर डील - अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता, जिसने भारत को ऊर्जा क्षेत्र में सशक्त बनाया।
सादगी और कर्तव्यनिष्ठा :
डॉ. मनमोहन सिंह राजनीति में एक दुर्लभ उदाहरण थे, जो कभी भी सत्ता के लिए लालायित नहीं हुए। उनके जीवन का हर पहलू ईमानदारी, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचायक था। उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना और अपने आचरण से इसे साबित भी किया।
व्यक्तित्व और दृष्टिकोण:
डॉ. सिंह का दृष्टिकोण हमेशा दूरदर्शी रहा। उनकी नीतियां और विचार सिर्फ तत्कालीन समस्याओं का समाधान नहीं थे, बल्कि उन्होंने भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर फैसले लिए। उनकी विनम्रता और सरलता उन्हें आम नेताओं से अलग बनाती थी।
डॉ. सिंह का योगदान: आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा:
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। उनकी नीतियां आज भी भारत की आर्थिक संरचना का आधार हैं। उनके आदर्श और उपलब्धियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।
शोक में डूबा देश:
डॉ. सिंह के निधन की खबर से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। देश के हर कोने से लोग इस महान नेता को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
"एक ऐसा नेता, जिसने देश को आर्थिक संकट से उबारा, एक स्थिर और समृद्ध भारत की नींव रखी। उनका जीवन सादगी, विद्वता और कर्तव्य का प्रतीक था।"
डॉ. मनमोहन सिंह का नाम इतिहास में हमेशा एक महान अर्थशास्त्री, नीतिज्ञ, और सच्चे राष्ट्रभक्त के रूप में याद किया जाएगा। उनका योगदान भारत के हर नागरिक के लिए एक अमूल्य धरोहर है।