कैसे फांसी के फंदे से बच निकला संजय रॉय? सबूतों के बावजूद जज ने सुनाई उम्रकैद की सजा
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के रेप और मर्डर केस में दोषी ठहराए गए संजय रॉय को सियालदाह कोर्ट ने फांसी की सजा देने के बजाय उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले को लेकर सीबीआई ने 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की दलील दी थी और फांसी की सजा की मांग की थी। बावजूद इसके, जज ने इस मामले में संजय रॉय को उम्रकैद की सजा दी। आइए जानते हैं, वह कारण जिनकी वजह से संजय रॉय फांसी की सजा से बच गया और जज ने इसे महज उम्रकैद तक सीमित रखा।
1. जज का 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की श्रेणी में न होना
कोर्ट ने इस मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की श्रेणी में नहीं माना। जज का कहना था कि इस अपराध का कृत्य गंभीर था, लेकिन इसे मौत की सजा का आधार नहीं माना जा सकता। जज ने कहा, "मैंने अपना काम कर दिया है, यदि आप चाहें तो उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं।"
2. आरोपी को सुधारने का अवसर देने की दलील
संजय रॉय के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि आरोपी को सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह सिद्धांत अपनाया है कि अगर सबूतों में कोई संदेह नहीं है, तो भी सजा-ए-मौत देने से पहले आरोपी के सुधार की संभावनाओं पर विचार किया जाना चाहिए। जज ने इस दलील को सही माना और फांसी की सजा से बचने का रास्ता खोला।
3. मानसिक और पारिवारिक स्थिति पर विचार
संजय रॉय के वकील ने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली की रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि सजा-ए-मौत को मानसिक स्थिति और पारिवारिक परिप्रेक्ष्य के आधार पर गलत ठहराया गया है। रिसर्च में यह साबित करने की कोशिश की गई कि किसी अपराधी को मानसिक और पारिवारिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए सजा दी जानी चाहिए। कोर्ट ने इस दलील पर भी विचार किया।
4. फैसले के बाद वकीलों का बयान
फैसले के बाद कुछ वकीलों ने कहा कि जज इस बात से पूरी तरह आश्वस्त थे कि यह मामला 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' नहीं है। उन्होंने कहा कि फांसी की सजा देने के बजाय, आरोपी को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए। इस कारण, जज ने मृत्युदंड की बजाय उम्रकैद की सजा दी।
5. घटना के अहम सबूत
संजय रॉय के खिलाफ सीबीआई ने कई ठोस सबूत पेश किए थे:
संजय का मोबाइल लोकेशन: घटना की रात करीब 4:03 बजे आरोपी आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सेमिनार हॉल में गया और 4:32 बजे बाहर निकला, इस दौरान उसने 29 मिनट में मेडिकल छात्रा के साथ दुष्कर्म किया और उसकी हत्या कर दी।
ब्लूटूथ और सीसीटीवी फुटेज: आरोपी का ब्लूटूथ घटनास्थल पर मिला, और उसकी MAC ID से मैच हुआ। इसके अलावा, सीसीटीवी फुटेज से भी संजय रॉय की मौजूदगी की पुष्टि हुई।
शरीर पर सबूत: पीड़िता के शरीर पर आरोपी के मुंह का सलाइवा पाया गया। रॉय की जींस और जूतों पर पीड़िता का खून था। संजय का डीएनए भी मौके पर मिले सबूतों से मेल खाता था।
चोट के निशान: आरोपी के शरीर पर पाए गए चोटों के निशान से यह साबित हुआ कि उसने पीड़िता से संघर्ष किया था, जो बचाव की कोशिश के दौरान हुए थे।
फोरेंसिक और चिकित्सीय जांच: फोरेंसिक रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हुआ कि उस रात घटनास्थल पर कोई और व्यक्ति मौजूद नहीं था। इसके अलावा, चिकित्सीय जांच ने यह खारिज कर दिया कि आरोपी यौन रूप से नपुंसक था।
संजय रॉय के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने के बावजूद, जज ने उसकी सजा को उम्रकैद तक सीमित किया। हालांकि सीबीआई ने इस मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' बताया था और फांसी की सजा की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने आरोपी को सुधारने का मौका देने के पक्ष में निर्णय लिया। यह मामला एक उदाहरण बनकर सामने आया कि कैसे न्यायिक प्रक्रिया में हर पहलू का गहन विचार किया जाता है।