बहुत पहले रैयत की मृत्यु होने पर मुखिया व सरपंच के हस्ताक्षर से बनेगा मृत्यु प्रमाण पत्र
राजस्व महाअभियान में नई व्यवस्था से ग्रामीणों को मिलेगी बड़ी राहत
पटना। बिहार के लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने अब उन मामलों में मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया बेहद सरल कर दी है, जहां रैयत (भूमि धारक) या जमाबंदीदार (भूमि रजिस्ट्रेशन धारक) की मृत्यु कई वर्ष पहले हो चुकी है और उनके उत्तराधिकारियों के पास आधिकारिक मृत्यु प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है।
अब ऐसे मामलों में उत्तराधिकारी सफेद कागज पर स्व-घोषणा पत्र (Self Declaration) देकर पंचायत के मुखिया या सरपंच के हस्ताक्षर से अभिप्रमाणित करा सकते हैं। यह अभिप्रमाणित स्व-घोषणा पत्र ही मृत्यु प्रमाण पत्र के बराबर मान्य होगा।
नई व्यवस्था क्यों जरूरी पड़ी?
बिहार के ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिनके मुखिया या पूर्वजों की मृत्यु कई दशक पहले हो चुकी है।
उस समय मृत्यु पंजीकरण की अनिवार्यता उतनी सख्त नहीं थी, और अधिकांश मामलों में रजिस्ट्रेशन हुआ ही नहीं।
पुराने रिकॉर्ड न होने के कारण भूमि संबंधी नामांतरण (mutation), उत्तराधिकार, और बंटवारे जैसी प्रक्रियाएं रुक जाती थीं।
इससे कई पीढ़ियों तक जमीन के दस्तावेज़ अपडेट नहीं हो पाते, और विवाद की स्थिति भी बन जाती थी।
राजस्व महाअभियान के दौरान इस समस्या को पहचानते हुए, विभाग ने प्रक्रिया में बदलाव किया है ताकि "मृत्यु प्रमाण पत्र के अभाव" से कोई पात्र परिवार वंचित न रह जाए।
नई प्रक्रिया क्या है?
1. स्व-घोषणा पत्र तैयार करना – मृतक रैयत या जमाबंदीदार का उत्तराधिकारी एक साधारण सफेद कागज पर लिखित घोषणा देगा कि फलां व्यक्ति उनकी जानकारी के अनुसार फलां तारीख या वर्ष में निधन हो चुका है।
2. गवाह और हस्ताक्षर – इस घोषणा पर गवाहों के हस्ताक्षर होंगे, और पंचायत के मुखिया या सरपंच द्वारा इसे प्रमाणित किया जाएगा।
3. स्वीकृति – प्रमाणित स्व-घोषणा पत्र को मृत्यु प्रमाण पत्र की तरह स्वीकार किया जाएगा।
4. वंशावली में उल्लेख – अगर पहले से सरकारी रिकॉर्ड में या वंशावली में व्यक्ति के नाम के साथ "मृत" लिखा है, तो वह भी प्रमाण के तौर पर मान्य होगा।
अधिकारियों का आदेश
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने सभी जिला समाहर्ताओं को इस संबंध में निर्देश भेजे हैं। आदेश के अनुसार, 16 अगस्त से 20 सितंबर तक चलने वाले राजस्व महाअभियान के दौरान इस नई प्रक्रिया को लागू किया जाएगा।
10 अगस्त को राजस्व सर्वे प्रशिक्षण संस्थान, पटना में पंचायत प्रतिनिधियों के संघों के साथ बैठक हुई थी, जिसमें इस विषय पर सुझाव आए। इन्हीं सुझावों के आधार पर विभाग ने नियमों में बदलाव किया है।
राजस्व महाअभियान – पृष्ठभूमि
बिहार सरकार का राजस्व महाअभियान भूमि संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए एक विशेष अभियान है। इसमें मुख्य रूप से—
नामांतरण (mutation)
बंटवारा (partition)
उत्तराधिकार का प्रविष्टि (succession entry)
जैसी प्रक्रियाओं को तेज़ी से निपटाया जाता है।
पहले इन प्रक्रियाओं के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र अनिवार्य था, लेकिन पुराने मामलों में प्रमाण पत्र न होने के कारण आवेदन खारिज हो जाते थे। अब नई व्यवस्था से यह बाधा दूर हो जाएगी।
विशेषज्ञों की राय
भूमि कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यह व्यवस्था लंबे समय से जरूरत थी।
पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता संजय सिंह का कहना है – “कई मामलों में रैयत की मृत्यु के 30-40 साल बाद उत्तराधिकारी नामांतरण के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन प्रमाण पत्र न होने से प्रक्रिया अटक जाती थी। यह कदम व्यावहारिक और न्यायसंगत है।”
हालांकि विशेषज्ञों ने यह भी चेताया है कि स्व-घोषणा पत्र में गलत सूचना देने पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान भी लागू होना चाहिए, ताकि फर्जी दावों पर रोक लग सके।
संभावित चुनौतियां
हालांकि यह व्यवस्था ग्रामीणों के लिए राहत लाएगी, लेकिन कुछ चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं:
1. फर्जी घोषणाएं – मृत घोषित कर किसी की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश हो सकती है।
2. गांव स्तर पर विवाद – मुखिया या सरपंच पर पक्षपात का आरोप लग सकता है।
3. रिकॉर्ड की सटीकता – बिना आधिकारिक दस्तावेज़ के मृत्यु की तारीख और विवरण अस्पष्ट रह सकते हैं।
सरकार की तैयारी
इन चुनौतियों से निपटने के लिए विभाग ने निर्देश दिया है कि—
पंचायत स्तर पर गवाहों की पहचान सुनिश्चित की जाए।
अगर किसी मामले में विवाद हो, तो तहसीलदार या अंचलाधिकारी स्तर पर जांच की जाए।
सभी स्व-घोषणा पत्रों की डिजिटल स्कैन कॉपी सुरक्षित रखी जाए।
क्यों है यह फैसला ऐतिहासिक?
बिहार में भूमि विवाद और नामांतरण की समस्याएं दशकों से आम हैं। आंकड़ों के अनुसार:
लगभग 30% भूमि मामलों में दस्तावेज़ अधूरे या अपडेट नहीं होते।
मृत्यु प्रमाण पत्र न होने के कारण 12% से अधिक नामांतरण आवेदन खारिज हो जाते थे।
ग्रामीण गरीब और बुजुर्ग लोग बार-बार कार्यालय के चक्कर लगाने को मजबूर थे ।अब यह फैसला सीधे तौर पर लाखों लोगों को फायदा पहुंचाएगा और राजस्व महाअभियान के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग का यह कदम न केवल प्रशासनिक सुधार है, बल्कि यह गांव-गांव में न्याय और सुविधा पहुंचाने की दिशा में बड़ा प्रयास है।
16 अगस्त से शुरू होने वाला राजस्व महाअभियान अब ऐसे परिवारों के लिए वरदान साबित हो सकता है, जो वर्षों से भूमि संबंधी अधिकार पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
इस नई व्यवस्था से उम्मीद है कि "कागज़ी अड़चनें" दूर होंगी और जमीन के मामलों का समाधान तेज़ी से हो सकेगा।