असमय मौत से टूटा हंसता-खेलता परिवार: डेढ़ वर्ष बाद भी न्याय और मदद की राह देख रहा है नीरज का परिवार
वारिसलीगंज (नवादा)।
डेढ़ वर्ष पहले बालू लदे ट्रैक्टर की चपेट में आकर असमय काल के गाल में समा चुके सामाजिक कार्यकर्ता एवं बिहार नाई समाज के प्रखंड इकाई वारिसलीगंज के युवा अध्यक्ष नीरज ठाकुर की मौत ने एक हंसते-खेलते परिवार को गहरे अंधेरे में धकेल दिया है।
सैलून चलाकर परिवार का भरण-पोषण करने वाले 35 वर्षीय नीरज आज इस दुनिया में नहीं हैं, और उनके निधन के बाद बूढ़ी मां, विधवा पत्नी और तीन छोटे बच्चों के सामने रोजी-रोटी की बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।
कमाऊ बेटे की मौत के बाद तंगहाली में जीवन
नीरज ठाकुर अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य थे। उनके मौत के बाद 76 वर्षीय वृद्धा मां और युवा पत्नी के पास आज कोई आय का साधन नहीं है। नीरज की मेहनत से चलने वाला सैलून उनके जाने के बाद बंद हो चुका है।
दोनों विधवाएं—नीरज की मां और पत्नी—आज समाज की उन कड़वी सच्चाइयों को झेल रही हैं, जहाँ घर में पुरुष न रहने का दर्द हर कदम पर दिखाई देता है।
समाज में लोकप्रिय, हर समुदाय में प्रिय थे नीरज
मिलनसार स्वभाव और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण नीरज हर वर्ग और समुदाय के लोगों में लोकप्रिय थे। नाई समाज के कार्यक्रमों में वह हमेशा अग्रणी रहते थे।
उनकी अचानक मौत ने न केवल परिवार को बल्कि पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया था।
नाई समाज के नेता ने निभाया वादा, स्कूल में तीनों बच्चों की मुफ्त पढ़ाई
नाई समाज के प्रमुख कार्यकर्ता डॉ. कमलेश शर्मा ने अपने वादे को निभाते हुए नीरज के तीनों बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी उठाई है।
उनके निजी स्कूल संस्कार पब्लिक स्कूल में तीनों बच्चों की शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क चल रही है, जो इस कठिन समय में परिवार के लिए बड़ी राहत बनी हुई है।
सरकारी मदद—सिर्फ 20 हजार रुपये! रोजगार का वादा अब भी अधूरा
नीरज की मौत के बाद सरकारी स्तर से परिवार को अब तक सिर्फ 20,000 रुपये का पारिवारिक लाभ मिला है।
घटना के समय बीडीओ द्वारा नीरज की पत्नी को आंगनबाड़ी सहायिका की नौकरी देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन डेढ़ वर्ष बाद भी यह वादा पूरा नहीं हुआ है।
परिवार को आपदा विभाग से मिलने वाली सहायता राशि भी अब तक जारी नहीं की गई है।
छह सदस्यों का परिवार किसी तरह कर रहा है गुज़ारा
परिवार में दो विधवा महिलाओं सहित कुल छह सदस्य हैं।
भोजन, कपड़ा, दवा, बच्चों की जरूरतें — इन सबको पूरा करना नीरज की पत्नी और मां के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।
पीड़ित विधवा ने बताया कि
“किसी भी आपदा या बीमारी की स्थिति में हम दोनों विधवाओं के लिए स्थिति संभाल पाना बेहद कठिन हो जाता है।”
अभाव से शुरू हुआ जीवन, संघर्ष में बीता सफर
मकनपुर गांव के रहने वाले नीरज ठाकुर का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा था।
पिता के निधन के बाद कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी।
कड़ी मेहनत करके उन्होंने न केवल सैलून चलाकर परिवार को संभाला, बल्कि सामाजिक कार्यों में भी सक्रियता से भूमिका निभाई।
लेकिन किस्मत ने उनके सफर को बीच में ही रोक दिया।
परिवार की मांग: न्याय, मुआवजा और स्थायी रोजगार
परिवार और स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि नीरज की पत्नी को आंगनबाड़ी सहायिका की नौकरी तुरंत दी जाए
आपदा विभाग की अनुदान राशि शीघ्र जारी की जाए
बच्चों की आगे की पढ़ाई और जीवनयापन के लिए स्थायी सरकारी सहायता मिले
इस घटना ने सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच के अंतर को भी उजागर कर दिया है।
समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि नीरज जैसे सामाजिक कार्यकर्ता के परिवार को बेबसी में न छोड़ें।

