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श्रीमद्भागवत गीता सार और अध्यायवार सार


 

🌼 श्रीमद्भागवत गीता सार और अध्यायवार सार

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जीवन, धर्म, कर्म, आत्मा और ईश्वर के रहस्यों का सार – भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य उपदेशों में।


भाग 1 : गीता का मूल सार

1. आत्मा अमर है

शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अविनाशी है। मृत्यु केवल परिवर्तन है, अंत नहीं।

2. कर्म योग – कर्म करो, फल की चिंता मत करो

“कर्म करने का अधिकार तुम्हारा है, फल देना मेरा काम है।” निष्काम कर्म से मन मुक्त होता है।

3. धर्म (कर्तव्य) सर्वोपरि है

किसी भी परिस्थिति में मनुष्य को अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

4. मन ही मित्र और मन ही शत्रु

संयमित मन व्यक्ति को ऊँचाई पर ले जाता है, असंयमित मन पतन कराता है।

5. भक्ति ही मुक्ति का सरल मार्ग है

प्रेम, श्रद्धा और पूर्ण विश्वास से की गई भक्ति मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचाती है।


6. तीन गुण – सत्त्व, रजस, तमस

सत्त्व (शांति), रजस (क्रिया), तमस (अज्ञान)। सत्त्व गुण को बढ़ाना ही साधना है।

7. ईश्वर सर्वत्र है

भगवान हर जीव, हर कण और हर हृदय में विद्यमान हैं।

8. मोक्ष – जन्म–मरण से मुक्ति

ज्ञान + निष्काम कर्म + भक्ति = मोक्ष। यही गीता का अंतिम लक्ष्य है।


भाग 2 : अध्यायवार सार (1 से 18 अध्याय तक)

1️⃣ अर्जुन-विषाद योग

अर्जुन युद्धभूमि में मोह और शोक में पड़ता है। कृष्ण उसे धर्म का स्मरण कराते हैं।

2️⃣ सांख्य/ज्ञान योग

आत्मा अमर है, शरीर नश्वर। कर्तव्य से भागना अधर्म है।

3️⃣ कर्म योग

बिना फल की इच्छा के कर्म करना ही सच्चा योग है।

4️⃣ ज्ञान–कर्म–संन्यास योग

ज्ञान से कर्म शुद्ध होते हैं। गुरु से ज्ञान प्राप्त करो। भगवान धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।

5️⃣ कर्मसंन्यास योग

कर्मयोग संन्यास से श्रेष्ठ है। शांत मन वाला सच्चा योगी होता है।

6️⃣ ध्यान योग

मन को नियंत्रित करने की विधि और ध्यान का महत्व बताया गया है।

7️⃣ ज्ञान–विज्ञान योग

परमात्मा ही जगत का कारण है। भक्ति और श्रद्धा से ही उन्हें जाना जा सकता है।

8️⃣ अक्षर-ब्रह्म योग

मृत्यु के समय ईश्वर का स्मरण करने वाला मोक्ष पाता है।

9️⃣ राजविद्या–राजगुह्य योग

सबसे श्रेष्ठ ज्ञान – ईश्वर भक्त के अत्यंत निकट हैं। प्रेम से किया गया छोटा भोग भी स्वीकार है।

🔟 विभूति योग

जो भी श्रेष्ठ है – वह भगवान की ही विभूति है।

1️⃣1️⃣ विश्वरूप दर्शन योग

कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैं, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाया है।

1️⃣2️⃣ भक्ति योग

भक्त का गुण – दया, शांति, विनम्रता और समभाव। प्रेम ही सच्ची भक्ति है।

1️⃣3️⃣ क्षेत्र–क्षेत्रज्ञ विभाग योग

शरीर क्षेत्र है और आत्मा क्षेत्रज्ञ। दोनों का भेद समझना ही ज्ञान है।

1️⃣4️⃣ गुणत्रय विभाग योग

सत्त्व, रजस, तमस तीन गुण हैं – जीवन का स्वभाव इन्हीं से बनता है।

1️⃣5️⃣ पुरुषोत्तम योग

संसार एक उल्टा वृक्ष है। जड़ ऊपर (परमात्मा) और शाखाएँ नीचे (जीव)।

1️⃣6️⃣ दैवासुर संपद विभाग योग

दैवी गुण अपनाओ – सत्य, दया, शांति। आसुरी गुण छोड़ो – क्रोध, लोभ, अभिमान।

1️⃣7️⃣ श्रद्धात्रय विभाग योग

मनुष्य की श्रद्धा तीन गुणों पर आधारित है – सात्त्विक, राजसिक, तामसिक।

1️⃣8️⃣ मोक्ष–संन्यास योग

ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म से मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है। कृष्ण का अंतिम उपदेश – “मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें मुक्त कर दूँगा।”


🌺 सम्पूर्ण सार 🌺

“गीता सिखाती है — आत्मा अमर है, धर्म के अनुसार कर्म करो, मन को योग से साधो, भक्ति से भगवान को पाओ और मोक्ष प्राप्त करो।”

🙏 श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद – मानव जीवन का अनंत मार्गदर्शन 🙏

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