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सकरी नदी से मिली प्राचीन प्रतिमा ने बढ़ाई हलचल:

 सकरी नदी से मिली प्राचीन प्रतिमा ने बढ़ाई हलचल: 

गोविंदपुर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, पुरातात्विक जांच को लेकर स्थानीयों व प्रशासन में मतभेद

गोविंदपुर (नवादा)। प्रखंड मुख्यालय गोविंदपुर के सकरी नदी में रविवार की दोपहर उस समय सनसनी फैल गई, जब बालू खनन के दौरान अचानक एक प्राचीन प्रतिमा निकली। जेसीबी मशीन से बालू खनन कर रहे मजदूरों ने जैसे ही मिट्टी की एक ठोस संरचना को देखा, काम रोक दिया। प्रतिमा मिलने की खबर पूरे क्षेत्र में जंगल की आग की तरह फैल गई और कुछ ही देर में मौके पर सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग दावा करते रहे कि यह प्रतिमा विष्णु भगवान की है, वहीं कई लोग इसे चमत्कारिक घटना बताते हुए सकरी नदी किनारे ही पूजा-अर्चना में जुट गए।

ग्रामीणों की बढ़ती भीड़ तथा पूजा-पाठ की जानकारी मिलते ही गोविंदपुर पुलिस प्रभारी राकेश कुमार दल बल के साथ घटना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने प्रतिमा की प्रारंभिक जांच की और बताया कि प्रतिमा की वास्तविकता और उसके ऐतिहासिक महत्व की पुष्टि भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा कराई जाएगी। इसके बाद पुलिस ने प्रतिमा को अपने कब्जे में लेने की बात कही, हालांकि स्थानीय लोगों के विरोध के कारण वे प्रतिमा को लेकर नहीं गए और इसकी जिम्मेदारी स्थानीय जनप्रतिनिधि, विशेषकर मुखिया, को सौंपकर वापस लौट गए।

भीड़ में आस्था की लहर, प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करने की मांग

प्रतिमा मिलने के बाद मंदिर परिसर व नदी किनारे माहौल आस्था से भर गया। महिलाएं माथे पर चुनरी रख कर पूजा करती दिखाई दीं, जबकि पुरुष श्रद्धालु दीप और अगरबत्ती लेकर प्रतिमा के पास जुट गए। कई स्थानीय ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा कि प्रतिमा नदी से निकलकर स्वयं प्रकट हुई है, अतः इसे नदी किनारे स्थित पंचवैहनी देवी स्थान मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए। ग्रामीणों का यह भी कहना था कि प्रतिमा को कहीं और ले जाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा।


गोविंदपुर डीह गांव में स्थित यह पंचवैहनी देवी स्थान वर्षों से धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है। उसी मंदिर के सामने ठेकेदार द्वारा बालू खनन का कार्य चल रहा था, जिसके दौरान प्रतिमा मिलने की बात सामने आई। ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र में अक्सर पुरातात्विक वस्तुएँ और प्राचीन अवशेष मिलते रहते हैं, इसलिए यह पूरी संभावना है कि यह प्रतिमा कई सौ वर्ष पुरानी हो।

विशेषज्ञों की राय—प्रतिमा विष्णु की नहीं, नागराज की संभावित मूर्ति

प्रतिमा के स्वरूप को लेकर ग्रामीणों में जहां इसे विष्णु भगवान की प्रतिमा बताने का दावा किया जा रहा था, वहीं विशेषज्ञों ने इससे बिल्कुल अलग राय दी है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के वरिष्ठ मूर्ति विशेषज्ञ डा. जलज कुमार तिवारी के अनुसार यह प्रतिमा भगवान विष्णु की नहीं बल्कि नागराज की प्रतिमा प्रतीत होती है। प्रतिमा की संरचना, आभूषण शैली तथा सिर के ऊपर उभरे बहु-फन नाग उनके इस दावे की पुष्टि करते हैं।

वहीं बुद्ध स्मृति पार्क संग्रहालय, पटना के प्रभारी डा. शिव कुमार मिश्र ने भी प्रतिमा को पाल कालीन बताया है। उनका कहना है कि आठवीं से बारहवीं शताब्दी के दौरान पाल राजाओं के शासन में नाग प्रतिमाओं और बौद्ध-हिन्दू कला का व्यापक विकास हुआ था। इसी कड़ी में यह प्रतिमा भी महत्व रखती है।

डा. मिश्र ने यह भी याद दिलाया कि पटना के नारदः संग्रहालय में पहले से ही नागराज की एक प्रतिमा संरक्षित है और नालंदा तथा नवादा जिलों में अतीत में कई बार नाग प्रतिमाएं मिल चुकी हैं। नालंदा के पुरातात्विक संग्रहालय से लेकर पटना संग्रहालय तक ऐसे अनगिनत प्रमाण मौजूद हैं जो पाल युगीन कला की गवाही देते हैं।

नियम और कानून क्या कहते हैं? प्रतिमा कहाँ जानी चाहिए?

प्रतिमा की उत्पत्ति चाहे जो हो, लेकिन कानून स्पष्ट है।

इंडियन ट्रेजर ट्रोव एक्ट 1878 के तहत किसी भी पुरातात्विक महत्व की वस्तु मिलने पर उसे अपने पास रखना, बेचना या छिपाना दंडनीय अपराध है।

इस कानून के अनुसार:

प्रतिमा मिलने की सूचना जिला प्रशासन को दी जानी चाहिए।

जिला कलेक्टर का दायित्व है कि वस्तु को कब्जे में लेकर सरकारी संग्रहालय में जमा कराए।

मूल्यांकन और वर्गीकरण के बाद ही प्रतिमा को किसी भी धार्मिक या सार्वजनिक स्थल पर रखने की अनुमति मिल सकती है।

बिहार पुलिस मैनुअल 1978 के अनुसार भी पुलिस की जिम्मेदारी है कि ऐसे पुरातात्विक साक्ष्य को सुरक्षित रखकर संग्रहालय में जमा करवाए। इस आधार पर पुलिस ने प्रतिमा को कब्जे में लेने की मंशा जताई, मगर स्थानीय विरोध के कारण उसे तत्काल ले जाना संभव नहीं हो सका।

ग्रामीणों का कहना—प्रतिमा स्थानीय मंदिर में ही स्थापित हो

स्थानीय ग्रामीण प्रशासनिक कदमों से असहमत दिखाई दिए। ग्रामीणों का तर्क है कि प्रतिमा “दिव्य प्रकट” हुई है और इसे मंदिर में ही स्थापित किया जाना चाहिए। कई ग्रामीणों ने बताया कि इन मंदिरों में पूर्व में भी धार्मिक वस्तुएँ नदी के आसपास से ही मिली हैं।

महिलाओं का कहना था कि प्रतिमा को लेने देने की प्रक्रिया में देरी या सरकारी कार्रवाई से इसे नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए इसे यहीं सुरक्षित रखा जाए। वहीं युवा वर्ग ने भी मंदिर में स्थापना का समर्थन करते हुए कहा कि इससे पूरे क्षेत्र का धार्मिक महत्व और पर्यटन बढ़ेगा।

प्रशासन के लिए चुनौती: आस्था बनाम कानून

घटनास्थल का माहौल देखकर स्पष्ट है कि प्रशासन के लिए यह मामला बेहद संवेदनशील है।

एक ओर ग्रामीणों की गहरी धार्मिक भावनाएँ हैं, वहीं दूसरी ओर कानूनन प्रतिमा को सरकारी संग्रहालय में जमा करना अनिवार्य है। ग्रामीणों का विरोध देखते हुए पुलिस को बैकफुट पर जाना पड़ा, लेकिन यह विवाद जल्द ही प्रशासन को निर्णायक कदम उठाने पर मजबूर कर सकता है।

जिला प्रशासन की ओर से अभी आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन संभावना है कि पुरातत्व विभाग की टीम प्रतिमा का वैज्ञानिक परीक्षण करेगी। इसके बाद ही यह तय होगा कि प्रतिमा मंदिर में स्थापित होगी या संग्रहालय के हवाले की जाएगी।

खोज का पुरातात्विक महत्व—इतिहास को खंगालने का मौका

प्रतिमा का मिलना केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अध्ययन का भी महत्वपूर्ण अवसर है। नवादा और नालंदा क्षेत्र लगातार पुरातात्विक दृष्टि से संपन्न साबित होते आए हैं। पिछले वर्षों में इन जिलों में—

बौद्ध स्तूप,

पाल कालीन लेख,

प्राचीन ईंट संरचनाएँ,

और विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ

मिलती रही हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह प्रतिमा वास्तव में पाल कालीन है, तो यह इस पूरे क्षेत्र के ऐतिहासिक वैभव को और प्रमाणित करती है। पाल साम्राज्य का यह क्षेत्र बौद्ध और हिन्दू कला का केंद्र हुआ करता था, जहाँ से पत्थर की उत्कृष्ट मूर्तियां पूरे उत्तर भारत में भेजी जाती थीं।

लोक आस्था बनाम वैज्ञानिक अध्ययन—कहां खड़ा है गोविंदपुर?

घटना ने पूरे इलाके में हलचल मचा दी है।

जहाँ ग्रामीण इसे चमत्कार और धार्मिक शक्ति का प्रतीक मान रहे हैं, वहीं पुरातत्व विशेषज्ञ इसे शोध का दुर्लभ अवसर बता रहे हैं। दोनों के बीच संतुलन बनाना प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा।

अगर प्रतिमा मंदिर में स्थापित हो गई तो उसका वैज्ञानिक विश्लेषण अधूरा रह सकता है। और अगर ग्रामीणों की सहमति के बिना प्रशासन इसे संग्रहालय ले गया तो विवाद बढ़ सकता है।

अगले कदम—क्या हो सकता है?

1. पुरातत्व विभाग की टीम प्रतिमा की जांच करेगी।

2. जिला कलेक्टर प्रतिमा की सुरक्षा और संग्रहालय में जमा कराने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।

3. ग्रामीणों और प्रशासन के बीच बैठक आयोजित हो सकती है।

4. प्रतिमा की प्राचीनता, शैली और निर्माण काल की वैज्ञानिक जांच की जाएगी।

5. अधिकारिक रिपोर्ट आने के बाद प्रतिमा के स्थायी स्थान का निर्णय लिया जाएगा।

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