बिहार के सरकारी अस्पताल ने बुजुर्ग महिला की मौत पर नहीं दी एंबुलेंस, बहू को 'गिरवी' रखने पर दिया स्ट्रेचर! नवादा में स्वास्थ्य व्यवस्था की बड़ी लापरवाही उजागर
नवादा/अकबरपुर: बिहार की स्वास्थ्य प्रणाली एक बार फिर सवालों के कटघरे में है। नवादा ज़िले के अकबरपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने पूरे स्वास्थ्य महकमे की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला की मौत के बाद अस्पताल ने शव ले जाने के लिए न तो एंबुलेंस दी और न ही स्ट्रेचर आसानी से उपलब्ध कराया। परिजनों को अपनी बहू को ‘गिरवी’ रखकर स्ट्रेचर लेना पड़ा और फिर रात में लगभग दो किलोमीटर पैदल चलकर शव को घर ले जाया गया।
यह घटना न केवल अमानवीय व्यवहार को दर्शाती है, बल्कि इस बात को भी साबित करती है कि ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों और मृतकों के प्रति संवेदनशीलता कितनी कम है। घटना के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद अब प्रशासन हरकत में आया है, लेकिन सवाल अभी भी वही हैं—क्या मरीजों और उनके परिजनों को इसी तरह अस्पतालों में संघर्ष करना होगा?
कैसे हुई यह दर्दनाक घटना?
मृतक महिला की पहचान अकबरपुर बाज़ार निवासी केशरी देवी (उम्र 75 वर्ष) के रूप में हुई है। मौत से कुछ घंटे पहले उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी, जिसके बाद परिवार ने उन्हें जल्दबाजी में अकबरपुर PHC में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया, लेकिन रात में उनकी मौत हो गई। मौत के बाद जो होना चाहिए था, वह नहीं हुआ—बल्कि जो हुआ वह अत्यंत दर्दनाक और असंवेदनशील था।
परिवार की पुकार, लेकिन अस्पताल ने नहीं दी एंबुलेंस
परिवार के सदस्यों ने बताया कि उन्होंने अस्पताल कर्मियों से बार-बार शव को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस की मांग की। लेकिन कर्मचारियों ने कहा कि:
यह सुनकर परिजन स्तब्ध रह गए। ग्रामीण क्षेत्रों में एम्बुलेंस सेवा पहले से ही सीमित होती है, और शव वाहन आमतौर पर जिला मुख्यालयों में उपलब्ध होते हैं। लेकिन मौत के बाद शव को सुरक्षित घर ले जाना भी परिजनों की प्राथमिक आवश्यकता है।
परिवार ने कई बार आग्रह किया, लेकिन हर बार वही जवाब मिला—"एम्बुलेंस नहीं मिलेगी।"
स्ट्रेचर के लिए बहू और पोते को ‘गिरवी’ रखा गया!
जब एम्बुलेंस नहीं मिली, तो परिवार ने कम से कम स्ट्रेचर देने की मांग की ताकि शव को किसी तरह घर तक पहुंचाया जा सके। लेकिन अस्पताल कर्मचारियों ने स्ट्रेचर देने के लिए भी नई शर्त रख दी। परिवार को मजबूर होकर अपनी बहू और पोते को अस्पताल में ही ‘गारंटी’ के तौर पर छोड़ना पड़ा।
इस तरह की शर्त न केवल अनैतिक है, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी उल्लंघन है। स्ट्रेचर जैसी बुनियादी सुविधा के लिए किसी परिजन को गिरवी रखना किस कानून या प्रोटोकॉल का हिस्सा है? यह सवाल अब पूरा जिला पूछ रहा है।
दो किलोमीटर पैदल शव लेकर चलना पड़ा
परिवार मजबूर था। उन्हें रात में ठंड के मौसम में लगभग दो किलोमीटर पैदल चलकर स्ट्रेचर पर शव को घर तक ले जाना पड़ा। घटना का वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गईं, जिसमें दिख रहा है कि परिवार सड़क पर स्ट्रेचर घसीटते हुए जा रहा है। राहगीर भी इसे देखकर दंग रह गए।
घर पहुँचने के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी की गई और फिर देर रात स्ट्रेचर वापस PHC में लौटाया गया। स्ट्रेचर लौटाने के बाद ही बहू और पोते को अस्पताल से छोड़ा गया।
पीड़ित परिवार ने क्या कहा?
मृतका के बेटे अजय साव ने बताया:
बहू ने भी कहा कि वह डर के मारे स्ट्रेचर वापस होने तक वहीं बैठी रहीं।
परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि अस्पताल कर्मचारियों ने संपूर्ण मामले में संवेदनहीनता दिखाई और बार-बार अपमानजनक व्यवहार किया।
सिविल सर्जन का क्या कहना है?
सोशल मीडिया पर मामला तेजी से फैलने के बाद नवादा के सिविल सर्जन डॉ. विनोद चौधरी ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि:
उन्होंने यह भी दावा किया कि परिवार पास में रहता था इसलिए उन्होंने *स्वेच्छा* से स्ट्रेचर पर शव ले जाने का निर्णय लिया।
लेकिन परिजन इस दावे को गलत बताते हुए कहते हैं कि अस्पताल ने जानबूझकर एम्बुलेंस और स्ट्रेचर देने में बाधा डाली।
क्या अस्पतालों का यह रवैया सही है?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि—
- अस्पताल में मौत के बाद शव को सम्मानपूर्वक ले जाना प्राथमिक जिम्मेदारी होती है।
- यदि शव वाहन नहीं है तो एम्बुलेंस एक विकल्प होना चाहिए।
- स्ट्रेचर देने के लिए किसी परिजन को 'गिरवी' रखना पूरी तरह अवैध है।
- इस मामले में अस्पताल कर्मियों का आचरण गंभीर लापरवाही है।
ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर साबित किया कि सिस्टम में सुधार की आवश्यकता है।
स्थानीय लोगों में आक्रोश
अकबरपुर और आसपास के इलाकों में इस घटना को लेकर गुस्सा है। लोगों का कहना है कि यदि बुजुर्ग महिला के शव को सम्मानपूर्वक ले जाने की सुविधा तक न दी जाए, तो ऐसे अस्पतालों का अस्तित्व ही किस काम का?
स्थानीय लोगों ने जांच और कार्रवाई की मांग की है।
क्या होगा आगे?
यह मामला अब प्रशासनिक जांच के दायरे में आ गया है। PHC के कर्मचारियों से पूछताछ के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन बड़ी समस्या यह है कि ग्रामीण अस्पतालों में ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आती हैं, फिर भी परिस्थितियाँ नहीं बदलतीं।
यदि स्वास्थ्य सेवाओं का न्यूनतम मानक भी लागू नहीं हो पा रहा, तो आम जनता की सुरक्षा और अधिकारों का क्या होगा?
निष्कर्ष
अकबरपुर PHC की यह घटना केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की वास्तविकता है। मृतक महिला को सम्मानपूर्वक घर ले जाने के लिए भी परिवार को संघर्ष करना पड़ा। यह घटना स्वास्थ्य महकमे के लिए चेतावनी है कि संवेदनशीलता, मानवता और तरीका—तीनों पर तुरंत ध्यान दिया जाए।
अब जनता और प्रशासन दोनों की नजरें इस मामले की जांच और कार्रवाई पर टिकी हैं।

