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बिहार पुलिस के 19 हजार सिपाहियों के तबादले की राह खुली – हाई कोर्ट ने ट्रांसफर पर लगी रोक हटाई, याचिकाकर्ताओं को अस्थायी राहत

 बिहार पुलिस के 19 हजार सिपाहियों के तबादले की राह खुली – हाई कोर्ट ने ट्रांसफर पर लगी रोक हटाई, याचिकाकर्ताओं को अस्थायी राहत

बिहार में पुलिस विभाग के स्तर पर एक बड़ी प्रशासनिक हलचल का रास्ता शुक्रवार को साफ हो गया, जब पटना हाई कोर्ट ने 19 हजार से अधिक सिपाहियों के तबादलों पर लगी रोक को हटा दिया। यह फैसला राज्य सरकार के लिए राहत की खबर लेकर आया, जबकि याचिकाकर्ता सिपाहियों के लिए फिलहाल आंशिक राहत बनी रही।

🔷 क्या है मामला?

5 मई 2025 को बिहार पुलिस मुख्यालय की ओर से एक बड़ा निर्णय लेते हुए 19,858 सिपाहियों का एक साथ ट्रांसफर आदेशित किया गया था। इन सभी सिपाहियों को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित किया गया था। यह स्थानांतरण आदेश राज्य सरकार के द्वारा बिना किसी स्पष्ट तबादला नीति के जारी किया गया था, जिसे लेकर संबंधित कर्मियों में भारी असंतोष देखने को मिला।

इस आदेश को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। प्रमुख याचिकाकर्ता अमिताभ बच्चन सहित कई अन्य सिपाहियों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि इतनी बड़ी संख्या में ट्रांसफर बिना किसी मौजूदा नीति के करना नियमों के खिलाफ है।

🔷 पहले कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?

याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजेश कुमार वर्मा की एकलपीठ ने 22 मई 2025 को राज्य सरकार के ट्रांसफर आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी और सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा था। इसके साथ ही मामला एक महीने के लिए टाल दिया गया।

🔷 अब क्या हुआ हाई कोर्ट में?

शुक्रवार, 27 जून को पटना हाई कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।

खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश में संशोधन करते हुए स्पष्ट कर दिया कि सिर्फ याचिकाकर्ता सिपाहियों के ट्रांसफर पर ही रोक जारी रहेगी, जबकि बाकी सभी पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर आदेश पर से रोक हटा दी गई है।

इस निर्णय के बाद अब राज्य सरकार 19 हजार से अधिक सिपाहियों को नए जिलों में नियुक्त करने की प्रक्रिया फिर से शुरू कर सकती है।

🔷 याचिकाकर्ताओं का तर्क क्या था?

याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में तर्क रखा गया कि:

बिहार सरकार ने 2022 में सिपाहियों की पुरानी ट्रांसफर नीति समाप्त कर दी थी।

तब से अब तक कोई नई ट्रांसफर पॉलिसी नहीं बनाई गई है।

इसके बावजूद एक साथ हजारों ट्रांसफर करना मनमानी और प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अपील की थी कि जब तक स्पष्ट नीति नहीं बनती, तब तक इस ट्रांसफर आदेश को अमान्य घोषित किया जाए।

🔷 सरकार की दलील

राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि यह ट्रांसफर प्रशासनिक जरूरत और सेवा हित में किया गया है। साथ ही यह भी कहा गया कि पुलिसिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने तथा जिलों में बल का समुचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक था।

🔷 फैसले का प्रभाव

19,858 में से अधिकांश सिपाहियों के ट्रांसफर अब लागू हो सकेंगे।

केवल वे सिपाही जो याचिकाकर्ता हैं, फिलहाल अपने वर्तमान पद पर बने रहेंगे।

पुलिस विभाग अब इन तबादलों की अधिसूचना जारी कर सकता है और ड्यूटी जॉइन कराने की प्रक्रिया आरंभ कर सकता है।

🔷 भविष्य की राह

अब देखना होगा कि याचिकाकर्ताओं की याचिका पर अंतिम फैसला क्या आता है। साथ ही, यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या बिहार सरकार अब नई ट्रांसफर पॉलिसी बनाने की दिशा में कोई कदम उठाती है या नहीं।

🔷 निष्कर्ष

इस निर्णय से जहां प्रशासनिक स्तर पर राहत मिली है, वहीं यह मामला एक बार फिर से यह सवाल उठा रहा है कि बिना नीति के बड़े निर्णय लेना क्या न्यायसंगत है? बिहार पुलिस जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में नियमबद्ध ट्रांसफर प्रक्रिया की आवश्यकता अब और अधिक महसूस की जा रही है।

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