भागलपुर: पिता द्वारा नाबालिग बेटी से 5 साल तक रेप, पुलिस की लापरवाही और न्याय की जद्दोजहद
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वकील, पिडीता पिडीता की मां |
घटना की पूरी कहानी
शुरुआत और पीड़ा: पीड़िता ने बताया कि जब वह पांचवीं कक्षा में थी, तभी से उसके पिता, जो नेवी से रिटायर्ड हैं और वर्तमान में गार्ड की नौकरी करते हैं, उसके साथ यौन शोषण कर रहे थे। विरोध करने पर पिता ने न सिर्फ उसका हाथ तोड़ा, बल्कि उसकी मां और उसे बंद कमरे में निर्वस्त्र कर बेरहमी से पीटा भी। यह सिलसिला पांच साल तक चलता रहा।
मां और बेटी की हालत: पीड़िता की मां भी इस अत्याचार की शिकार रही हैं। पिता अक्सर दोनों को धमकाते, मारते और डराते थे। मां ने भी पुलिस को बताया कि उसका पति मारने की धमकी देता था।
भागकर ननिहाल पहुँचना: अत्याचार से तंग आकर 10 जून को पीड़िता अपनी मां के साथ ननिहाल भाग गई। लेकिन अगले ही दिन पिता वहां भी पहुंच गया और नशे की हालत में फिर से बेटी के साथ दुष्कर्म की कोशिश की।
पुलिस की भूमिका और लापरवाही
शिकायत दर्ज कराने में मुश्किलें: जब पीड़िता अपने नाना-नानी के साथ महिला थाना पहुँची, तो पुलिस ने शुरुआत में उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। उल्टा लड़की को ही झूठा ठहराने की कोशिश की गई। पुलिसकर्मियों ने कहा, "बाप-बेटी के साथ ऐसा होता है क्या?" और "कपड़ा तुम खुद से भी फाड़ सकती हो।" लड़की को चार घंटे तक थाने में बैठाया गया और मानसिक दबाव बनाया गया कि अगर रिपोर्ट गलत निकली तो क्या होगा।
वरिष्ठ अधिकारियों का हस्तक्षेप: आखिरकार, जब पीड़िता ने डीजी मुख्यालय को फोन कर घटना की जानकारी दी, तब डीजी के निर्देश पर आईजी और एसएसपी ने हस्तक्षेप किया। इसके बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई और आरोपी पिता को हिरासत में लिया गया।
जांच में देरी: सिटी एसपी शुभांक मिश्रा ने भी स्वीकार किया कि एफआईआर दर्ज करने में चार घंटे की देरी हुई, जिसकी जांच की जाएगी। महिला पदाधिकारी को भी पूरे मामले की जांच का आदेश दिया गया है।
मामले की जांच और आगे की कार्रवाई
आरोपी की गिरफ्तारी: पुलिस ने आरोपी पिता को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। घटना स्थल की जांच के लिए टीम भेजी गई है और पीड़िता को मेडिकल जांच के लिए भेजा गया है।
मां का आरोप: पीड़िता की मां ने आरोप लगाया कि थाने में 15 लाख रुपये लेकर केस मैनेज करने की बात कही गई थी। इससे पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
एडवोकेट का बयान: एडवोकेट नीतू कुमारी ने कहा कि जब लड़की ने उन्हें घटना की जानकारी दी तो वे स्तब्ध रह गईं। उन्होंने लड़की को एसएसपी से मिलने की सलाह दी, जिसके बाद ही मामला आगे बढ़ पाया।
सामाजिक और प्रशासनिक सवाल
पुलिस की संवेदनहीनता: इस मामले ने एक बार फिर पुलिस की संवेदनहीनता और पीड़िता के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये को उजागर किया है। पुलिस ने न सिर्फ पीड़िता की बात को नजरअंदाज किया, बल्कि उसे ही झूठा साबित करने की कोशिश की। ऐसे मामलों में पुलिस की भूमिका पीड़ितों के लिए न्याय का रास्ता और भी कठिन बना देती है।
परिवार और समाज की चुप्पी: पीड़िता ने कहा कि पांच साल तक वह चुप रही क्योंकि उसे डर था, शर्मिंदगी थी और कोई सुनने वाला नहीं था। जब उसने बोलने की हिम्मत दिखाई, तो समाज और सिस्टम दोनों ने उसे अकेला छोड़ दिया।
अब आगे क्या?
मेडिकल और कानूनी प्रक्रिया: पीड़िता की मेडिकल जांच कराई जा रही है। पुलिस ने आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। वरिष्ठ अधिकारी लगातार मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
जांच की निगरानी: एसएसपी ने खुद जांच की निगरानी का जिम्मा लिया है और महिला थाना की पदाधिकारी को भी जांच सौंपी गई है। एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी की भी जांच होगी।
यह मामला न सिर्फ एक मासूम बच्ची के साथ हुए अमानवीय अत्याचार की कहानी है, बल्कि हमारे समाज और सिस्टम की कमजोरियों को भी उजागर करता है। पुलिस की लापरवाही, समाज की चुप्पी और आरोपी की हैवानियत—तीनों ने मिलकर एक बच्ची की जिंदगी को नर्क बना दिया। अब उम्मीद है कि प्रशासन की सक्रियता और मीडिया की नजर के चलते पीड़िता को न्याय मिलेगा और दोषी को सख्त सजा मिलेगी।
"जिसके अंदर हैवानियत होती है, वो बाप-बेटी का रिश्ता नहीं समझता है।" — पीड़िता