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जब ज़िंदगी बिजली और पानी की मोहताज हो जाए

 जब ज़िंदगी बिजली और पानी की मोहताज हो जाए

2025 का भारत स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया, जल जीवन मिशन और हर घर नल जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की बातें करता है। लेकिन जब हम कहुआरा गांव की जमीनी हकीकत देखते हैं, तो साफ नजर आता है कि इन योजनाओं की रौशनी अब भी कई गांवों तक नहीं पहुंची है – कहुआरा उन्हीं में से एक है।

बिजली और पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की अनुपलब्धता ने गांव के हर वर्ग – गरीब, किसान, छात्र, महिलाएं, और वृद्ध – सबको बुरी तरह प्रभावित किया है।

बिजली की हालत – जब अंधेरा ही स्थायी नागरिक बन जाए

कहुआरा गांव में बिजली की स्थिति “हो भी सकती है और नहीं भी” जैसी है।

गर्मी में बिजली का आना कभी-कभी एक त्योहार जैसा लगता है – बमुश्किल एक से दो घंटे की आपूर्ति।

दिन के समय वोल्टेज इतना कम होता है कि पंखे नहीं चलते।

रात में, जब गर्मी की तपिश और मच्छरों का आतंक सबसे अधिक होता है, बिजली अक्सर नदारद होती है।

बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की नींद, और घर-परिवार की दिनचर्या – सब अस्त-व्यस्त हो चुकी है। गर्मी के इस मौसम में बिजली की अनुपस्थिति स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है।

 "गांव के बच्चों को किताबी ज्ञान चाहिए, लेकिन बिना रोशनी के वो किताबें सिर्फ बंडल बन जाती हैं।"

💧 पानी की समस्या – जब प्यास 'सरकारी योजना' के भरोसे हो

जलमीनार (पानी की टंकी) गांव में तो है, लेकिन सिर्फ देखने के लिए। जब बिजली ही नहीं है, तो पानी की मोटर कैसे चले?

गांव की 60% से अधिक आबादी ऐसी है जिनके पास घर में न छत पर टंकी है, न पंप सेट।

जिनके पास खुद की मोटर है, वो किसी तरह पानी भर पाते हैं, पर गरीबों के हिस्से में सिर्फ लाइन और इंतजार आता है।

बुजुर्ग महिलाएं, स्कूल जाने वाली बच्चियां, और मजदूर वर्ग के लोग दिन के घंटे सिर्फ पानी लाने में खर्च कर देते हैं।

 गांव वालों का कहना है हम पानी पीने के लिए तरसते हैं। ये क्या 21वीं सदी है?"

🕳️ चापाकल भी सूखे – जलस्तर जा चुका है नीचे

गांव के अधिकांश चापाकल या तो बिल्कुल सूख चुके हैं या उनमें से आने वाला पानी उपयोग के लायक नहीं रहा।

गांव में हैंडपंप है । लेकिन उसके नीचे पानी नहीं  है।

जलस्रोतों का दोहन हो चुका है, लेकिन विकल्प नहीं दिया गया।

🔥 गर्मी की मार और बिजली-पानी की हार

कहुआरा गांव में इस वक्त तापमान 40 डिग्री से ऊपर जा रहा है।

रातों में छोटे बच्चे बिना पंखे के रोते-चिल्लाते हैं।

वृद्ध लोग बीमारियों से जूझ रहे हैं, पर कूलर/पंखे जैसे आराम तो सपना हैं।

जो लोग बीमार हैं, उनके लिए दवाएं रखना भी मुश्किल है क्योंकि फ्रिज नहीं चलता।

🎓 छात्रों की पढ़ाई चौपट – सपनों का अंधकार

गांव के कई छात्र इंटर और मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन:

रात में पढ़ाई नहीं हो पाती।

मोबाइल चार्ज न हो पाने के कारण ऑनलाइन क्लास और डिजिटल एजुकेशन से भी कट चुके हैं।

किताबें हैं, पर रोशनी नहीं। टीचर हैं, पर सुविधाएं नहीं।

"बिजली नहीं, तो आगे कैसे बढ़ेगा कहुआरा?"

🗳️ चुनाव से पहले वादे – और बाद में सन्नाटा

हर बार चुनाव में नेता गांव आते हैं, हाथ जोड़ते हैं, मंच लगाते हैं, और बड़े-बड़े वादे करते हैं:

👉 "हर घर बिजली पहुंचेगी"

👉 "हर घर नल का जल पहुंचेगा"

👉 "बिना भेदभाव के सुविधा दी जाएगी"

पर जब चुनाव जीत जाते हैं तो सबसे पहले बिजली और पानी को ही गांव से दूर कर देते हैं।

“किसी नेता ने लौट कर हाल भी नहीं पूछा। पूछते हैं तो सिर्फ वोट के वक्त।”

📜 सरकारी योजनाएं कागज़ पर पूरी, ज़मीन पर अधूरी

जल जीवन मिशन: कहुआरा में टंकी है, पर सप्लाई ठप।

सौभाग्य योजना: घरों में मीटर तो लगे हैं, पर बिजली नहीं।

हर घर नल योजना: नल है, पर न पानी है, न प्रेशर।

ग्राम स्वराज अभियान: गांव में स्वराज नहीं, सिर्फ संघर्ष है।

📣 जनता की  प्रमुख मांगें

1. 24 घंटे स्थायी बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।

2. जलमीनार को सोलर पावर या DG सेट से जोड़कर मोटर चालू की जाए।

3. सभी पुराने हैंडपंपों की री-बोरिंग कराई जाए।

4.हर सप्ताह स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा स्थिति की  निगरानी की जाए।

📢 प्रशासन से अपील:

**कहुआरा कोई जंगल नहीं है, जहां सुविधाएं पहुंचने में 100 साल लगें। यह गांव बिहार के उसी नवादा जिले में है, जहां आज भी नेताओं के बोर्ड चमकते हैं। अब समय आ गया है कि सिर्फ बोर्ड नहीं, जवाबदारी भी निभाई जाए।

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